केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने 26 अगस्त को ऋण स्थगन अवधि के दौरान ब्याज के मुद्दे पर एक सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि आरबीआई के पीछे न छिपें, अपना स्टैंड बताएं। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ''आप अपना रुख स्पष्ट करें। आप कुछ भी नहीं कह सकते हैं। आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत कदम उठाना आपकी जिम्मेदारी है। आपके पास पर्याप्त अधिकार हैं। आप केवल आरबीआई पर निर्भर नहीं रह सकते। सरकार के खिलाफ अदालत की प्रतिकूल टिप्पणियां सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा मामले में आरबीआई के हलफनामे के बाद आईं जिसमें कहा गया था बैंकिंग संस्थान भी परेशान हैं। इस हलफनामे के बाद बेंच नाराज हो गई। जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह और जस्टिस अशोक भूषण की  बेंच ने कहा, ह्यह्ययह केवल व्यावसायिक हितों का ध्यान रखने का समय नहीं है, बल्कि आपको लोगों की दुर्दशा पर भी विचार करना चाहिए।'' इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत सभी आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर रही सरकार इस टिप्पणी के बाद कुछ सुधार कर सकती है। जिस पर पीठ ने जवाब दिया, ह्यफिर आपको स्टैंड लेना चाहिए... यहां दो मुद्दे हैं। क्या कोई ब्याज लगाया जाना चाहिए और क्या ब्याज पर कोई ब्याज लगाया जाना चाहिए.? दरअसल लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार के द्वारा दिए गए लोन मोरेटोरियम पर बैंक ब्याज वसूल रहे हैं, इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इसी पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। बता दें कि रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने दो अलग-अलग किस्त में 6 महीने के लोन मोरेटोरियम का ऐलान किया था और लोगों को ईएमआई नहीं देने की छूट दी थी। लोन पर दी गई मोरेटोरियम की मियाद 31 अगस्त को खत्म हो रही है। मौजूदा अर्थव्यवस्था पर चिंता जाहिर करते हुए जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि यह समय बिजनेस के बारे में सोचने का नहीं है। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल कोर्ट में पेश हुए। सिब्बल ने कहा कि मोरेटोरियम की अवधि 31 अगस्त को खत्म हो रही है। 1 सितंबर के बाद से हम सभी डिफॉल्ट लिस्ट में होंगे। इसके बाद ये लोन एनपीए बन जाएंगे, जोकि बड़ी समस्या बनेगा। 



ब्याज की शर्त को कुछ ग्राहकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी दलील है कि मोरेटोरियम में इंटरेस्ट पर छूट मिलनी चाहिए, क्योंकि ब्याज पर ब्याज वसूलना गलत है। एक पिटीशनर की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने 25 अगस्त की सुनवाई में यह मांग भी रखी कि जब तक ब्याज माफी की अर्जी पर फैसला नहीं होता, तब तक मोरेटोरियम पीरियड बढ़ा देना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार, आरबीआई के साथ को-आॅर्डिनेशन कर रही है। सभी समस्याओं का एक जैसा सॉल्यूशन नहीं हो सकता। इस मामले की पिछली सुनवाई में अदालत ने कहा था कि सरकार इसे बैंकों और कस्टमर के बीच का मामला बताकर पल्ला नहीं झाड़ सकती। साथ ही कमेंट किया था कि बैंक हजारों करोड़ रुपए एनपीए में डाल देते हैं, लेकिन कुछ महीने के लिए टाली गई ईएमआई पर ब्याज वसूलना चाहते हैं। कोरोना और लॉकडाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति काफी खराब हो चुकी है। लॉकडाउन के बाद किसी के दुकान की पूंजी टूट गई है तो किसी की नौकरी चली गई है। ऐसे में हर किसी की फाइनेंशियल कंडीशन पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। उन कंपनियों और स्टार्टअप्स का बहुत बुरा हाल है जिन्होंने बैंकों से काफी ज्यादा कर्ज लिया हुआ था। इसके अलावा हालात ऐसे हो गए हैं कि अब कर्जदारों के पास ईएमआई तक चुकाने के पैसे नहीं बचे हैं। जुलाई के अंत तक आई आरबीआई की एक रिपोर्ट में चेताया गया था कि बैंकिंग सिस्टम के सामने एक बड़ा खतरा आ सकता है। आरबीआई की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों का एनपीए यानि कि गैर-निष्पादित परिसंपत्ति चालू वित्त वर्ष के अंत तक बढ़कर 12.5 फीसदी हो सकता है। बैंकों का एनपीए मार्च 2020 में साढ़े आठ फीसदी था। इससे यह साफ होता है कि कोरोना वायरस की वजह से देशभर में लगाए गए लॉकडाउन से बिजनेस काफी प्रभावित हुए हैं और बैंकों की हालत इतनी खराब हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक बहुत गंभीर दबाव वाली स्थितियों की राशि एक मार्च 2021 तक 14.7 फीसदी तक जा सकता है।


रिपोर्ट में कहा गया है कि स्ट्रेस टेस्ट ये यह पता चलता है कि सभी कमर्शियल बैंकों का ग्रॉस एनपीए अनुपात मार्च 2020 के साढ़े आठ फीसदी से बढ़कर मार्च 2021 में 12.5 फीसदी तक हो सकता है। इस आकलन बेसलाइन स्थिति के आधार पर किया गया है। आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक एनपीए और जोखिम भाराशं संपत्ति अनुपात के रूप में पूंजी का आकलन किया गया है। इसमें तुलनात्मक आधार पर तीन परिस्थितियों यानि कि मध्यम, गंभीर और बहुत गंभीर के तहत परिदृश्य की गणना की गई है रिपोर्ट के अनुसार, तुलनात्मक परिदृश्य का आकलन जीडीपी के अनुपात के रूप में शक्ल राजकोषीय घाटा और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति समेत अन्य वृहत आर्थिक चरों के अनुमानित मूल्य के आधार पर किया है।  रिपोर्ट के आधार पर अगर माइक्रोइकोनॉमिक अनुपात और बिगड़ते हैं तो यह अनुपात 14.7 फीसदी तक जा सकता है। इसमें कहा गया है कि माइक्रोनोमिक दबाव के दौर में देश के बैंकों की मजबूती का परीक्षण किया गया। इसमें इस बात का आकलन किया गया कि जो भी दबाव होंगे, उसका बैंकों के बहीखातों पर क्या असर होगा। अगर बैंकों की लोन बुक की स्थिति और खराब होती है तो इससे कैपिटल वफर प्रभावित होगा।


 और फिर बैंकों का कंपनियों को कर्ज देना मुश्किल हो जाएगा। लोग रिपेमेंट में मोहलत यानी लोन मारेटोरियम से कंपनियों को कुछ राहत मिली है लेकिन अगस्त में इस मोहलत के खत्म होने के बाद कई बैंकों के लोन एनपीए में बदल सकते हैं। एक और अध्ययन से भी यह अनुमान लगाया गया है कि कोविड-19 के कारण तीन लाख करोड़ का कर्ज एनपीए में डूबने का खतरा है, यदि बैंकों की तरफ से इनका पुनर्गठन नहीं किया जाता। बैंकों को कर्ज का पुनर्भुगतान न होने को कुछ शर्तों के तहत इसे एनपीए श्रेणी में न डालने की अनुमति देने वाली यह योजना उन्हें काफी राहत देगी। अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालात और बढ़ते एनपीए से सरकार को अब एक ऐसी योजना तैयार करने की जरूरत है जो कि आने वाले महीनों में लोन और डिफाल्ट की समस्या को हल करने में कारगर साबित हो। (हिफी)