चिकित्सा कर्मियों का दर्द व दायित्व


नई दिल्ली। कोरोना की महामारी से सबसे खतरनाक मोर्चा डाक्टर और चिकित्साकर्मी ही ले रहे हैं और कितने ही लोग इस बीमारी का इलाज करते-करते इसका शिकार भी हो गये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से कोरोना के इन महायोद्धाओं का देशवासियों से सम्मान करवाया। इन पर हेलीकाप्टर से पुष्प वर्षों की गयी। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी डाक्टर्स डे के अवसर पर चिकित्साकर्मियों का दर्द सुना। भारत में डाक्टर्स दिवस की शुरूआत 1991 में हुई थी। यह दिवस पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डा. विधान चन्द्र राय के जन्मदिन (1 जुलाई) को उनको सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। डाक्टरों और चिकित्साकर्मियों की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि राहुल गांधी से बातचीत में उन्होंने अपना दर्द बयां किया है। हालांकि इसी दिन राजस्थान में एक शर्मनाक घटना भी हुई जो बताती है कि चिकित्साकर्मी अपने कर्तव्य से भाग रहे हैं। मामला राजस्थान का है जहां कांग्रेस की सरकार है। 


डॉक्टर्स डे के अवसर पर देश और दुनिया में काम करने वाले कुछ स्वास्थ्यकर्मियों ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से अपना अनुभव साझा किया। इस दौरान एम्स में काम करने वाले केरल के डॉक्टर विपिन ने अपना अनुभव बताया। विपिन ने बताया कि दिल्ली में टेस्टिंग काफी कम हो रही है और लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। विपिन ने बताया कि मुझे भी कोरोना वायरस हो गया। मैं अभी क्वारनटीन हूं। विपिन बोले कि मेरी पत्नी को भी कोरोना हुआ है, उसे टेस्ट के लिए दस घंटे तक इंतजार करना पड़ा। मौजूदा स्थिति के बारे में डॉक्टर ने बताया कि भारत में 1.2 मिलियन एलोपैथिक डॉक्टर हैं, जबकि 3 मिलियन से अधिक नर्स हैं। लेकिन भारत में प्राइवेट और सरकारी अस्पताल में जमीन आसमान का अंतर है। प्राइवेट अस्पतालों में यही दिक्कत है कि उनकी सैलरी कट रही है, सरकार को मदद करनी चाहिए। दिल्ली की स्थिति को लेकर उन्होंने कहा कि दिल्ली में पहले सिर्फ 7 हजार टेस्ट कर रहे थे, लेकिन जब टेस्टिंग बढ़ी तो पॉजिटिव रेट बढ़ रहा है लेकिन फिर दिल्ली में टेस्टिंग कम कर दी गई। अगर दिल्ली में पांच लाख केस की बात हो रही है, तो सिर्फ दस हजार बेड से कैसे काम चल पाएगा। उन्होंने बताया कि दिल्ली में दो नर्स की डेथ हो गई है, दिल्ली सरकार ने जो बोला है वो अभी तक एक करोड़ रुपये नहीं दिया गया। ऐसे में अगर परिवार को मदद नहीं मिलती है, तो काफी दिक्कत होगी। इस पर राहुल ने कहा कि वो सरकार को इसपर चिट्ठी लिखेंगे। विपिन ने कहा कि किसी भी रणनीति बनाने को लेकर डॉक्टरों से पॉलिसी बनाने के वक्त बात होनी चाहिए, लेकिन आज कल वो नहीं हो पा रहा है। इस बीच काफी दिक्कत इस बात की भी आ रही है कि जिनको कोरोना से अलग बीमारी है, उन्हें इलाज नहीं मिल रहा है।


डाक्टर्स डे के दिन ही राजस्थान से चिकित्साकर्मियों के कर्तव्यपथ से भागने की खबर मिली। राजस्थान में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। राजस्थान के सरकारी अस्पताल की पोल खोलने वाला एक वीडियो भी सामने आया है। कोरोना मरीज नवरत्न ने राजस्थान के सरकारी अस्पताल की पोल खोलने वाला वीडियो बनाया था। 
वीडियो में अस्पताल की बदइंतजामी को दिखाया गया है।


कोरोना संक्रमित होकर अस्पताल में भर्ती हुए जयपुर के नवरत्न ने सरकारी अस्पताल में फैली अव्यवस्थाओं से परेशान होकर यह वीडियो बनाया था लेकिन शायद उन्हें ये नहीं पता होगा कि ये उनके जीवन का आखिरी वीडियो होगा।
बताया गया 15 जून को नवरत्न को जयपुर के आरयूएचएस अस्पताल के कोरोना वार्ड में भर्ती कराया गया था और 20 जून को उनके परिवार को सूचना मिली कि उनका शव मोर्चरी में रखा हुआ है। हालांकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि नवरत्न की मौत कोरोना से हुई है। जयपुर के ब्रह्मपुरी इलाके के रहने वाले नवरत्न नाम के व्यक्ति ने प्राइवेट अस्पताल में जांच कराई तो पता चला कि वो कोरोना पाॉजिटिव हैं। इसके बाद वह खुद सरकारी अस्पताल के कोरोना वार्ड में एडमिट हो गए लेकिन 20 जून को नवरत्न के बेटे सूरज को पता चला कि उसके पिता की मौत हो गई है। सवाई मानसिंह अस्पताल की मोर्चरी में दो दिन तक नवरत्न का शव पड़ा रहा। मोर्चरी में ही काम करने वाले एक व्यक्ति जो कि नवरत्न के परिवार का जानकार था, उसको शक हुआ तो नाम और पता का मिलान कराया जिसके बाद पता चला कि ये कोई और नहीं बल्कि नवरत्न ही है जिनकी मौत हो गई।


अस्पताल प्रशासन की एक और गलती से नवरत्न के परिजनों को सही समय पर सूचना ही नहीं मिली क्योंकि जो पता और नंबर अस्पताल में दाखिल होने से पर्ची पर लिखा था, उसको डिस्चार्ज स्लिप में बदल दिया गया। यानी मरीज का नाम और पता जयपुर से बदलकर भरतपुर का दिखा दिया गया। इसके बाद मोर्चरी में सही मिलान न हो पाने की वजह से नवरत्न के परिवार को भी उनकी मौत की सूचना दो दिनों तक नहीं मिल पाई। इस प्रकार की लापरवाही नहीं होनी चाहिए।


हमारे समाज में डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है, क्योंकि वही एक ऐसा शख्स है, जो किसी को मौत के मुंह में जाने से बचा सकता है। तिल-तिल मरते किसी इंसान को जिंदगी दे सकता है और खोई हुई उम्मीदों को जीता-जागता उत्साह दे सकता है। जाहिर सी बात है कि धरती पर एक डॉक्टर ही साक्षात ईश्वर का काम करता है और इसके लिए उनके प्रति जितना कृतज्ञ हुआ जाए कम ही होगा। डॉक्टर्स को प्राप्त इस देव पद के सम्मान में ही 1 जुलाई को हम डॉक्टर्स डे मनाते हैं। 
अब सवाल यह उठता है, कि डॉक्टर्स डे तो मना लें, लेकिन किसके लिए मनाएं...। हमारे भाव तो चिकित्सक के प्रति बिल्कुल सही है, लेकिन क्या चिकित्सक सच में देवता रह गया है? मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले के बाद खुलने वाले कई राज, हमें ये बता गए, कि हर बड़े या छोटे शहर में कहीं कोई चिकित्सक ऐसा बैठा है, जो नकाबपोश है। न जाने कितने ऐसे डॉक्टर्स हैं जो अपने चिकित्सकीय ज्ञान की वजह से नहीं, बल्कि पैसे और फर्जी डिग्रियों के जरिए वहां बैठे हैं, लोगों को ठगने के लिए। जिन्हें बीमारी का भी सही पता नहीं, दवा तो बहुत दूर की बात है।


 व्यापमं घोटाला ही क्यों, यूं भी अब सेहत एक बड़ा व्यवसाय बन चुकी है, जहां डॉक्टर्स की प्राथमिकता सिर्फ मरीजों का इलाज ही नहीं, बल्कि उनसे मोटी रकम ऐंठना भी है। अस्पताल में दाखिल होते ही, कई तरह की गैरजरूरी जांचें, जिनका कई बार बीमारी से संबंध ही नहीं होता, आवश्यक तौर पर कराने की सलाह दी जाती है। बीमारी से परेशान मरीज और अपने के दुख से दुखी रिश्तेदार डरे-सहमे जांचें कराते भी हैं और कहीं से भी इंतजाम करके उतना पैसा भरते भी हैं, जितना कमाने में शायद उनकी जिंदगी निकल चुकी होती है।


 इन सब के बावजूद, मरीजों की न तो ठीक से देखभाल हो पाती है और न ही डॉक्टर्स के पास उन्हें देखने का समय होता है। देवता के इस अवतार को मान-मनुहार करके बुलाया जाता है मरीज को देखने के लिए। सरकार अस्पतालों में तो स्थिति और भी भयानक है। यहां सिर्फ अपने आराम और तनख्वाह की परवाह की जाती है, और न मिल पाने वाली सुविधाओं के विरोध में आंदोलन करने की। लेकिन मरीज कहां किस कोने में कराह रहा है, इसका ख्याल तक नहीं होता। इंदौर का एमवाय अस्पताल ही ले लीजिए...सोचकर कंफ्यूजन होता कि लोग वहां ठीक होने के लिए जाते हैं या और बीमार होने के लिए। अधमरे इंसान की मौत तो वहां तय है। 


डॉक्टर में भगवान बसते हैं...और अगर ऐसा है, तो इन देवताओं को अपने प्रति सम्मान बनाए रखने के लिए अधिक प्रयास करने की जरूरत है, वरना आम जनता का विश्वास एक दिन जरूर इस भगवान से उठ जाएगा। (हिफी)