समय की मांग 'जनसंख्या कम रखना' भी देशभक्ति


स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या वृद्धि के खतरों के प्रति सजग करते हुए नया नारा दिया, 'छोटा परिवार, देशभक्ति का आधार'। यह पहली बार है कि  किसी नेता ने टिप्पणी की है। अब तक हमारे नेता सार्वजनिक वक्तव्य देते हुए इस मुद्दे को उठाने से परहेज करते थे।  


जब देश के राजनैतिक नेताओं की मानसिकता जनसंख्या वृद्धि के खतरों को समझने में असमर्थ हो तो आखिर उससे जुड़ी हुई अन्य सभी समस्याओं से कैसे निजात पाया जा सकता है? हर समाधान को साम्प्रदायिक दृृष्टि से देखना, उसका विरोध करना जहां हमारे नेताओं के विवेक और उनकी देश के प्रति निष्ठा पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है। जनसंख्या पर रोक की बात को अल्पसंख्यक विरोधी घोषित कर ये नेता स्वयं सिद्ध करते हैं कि कुछ सम्प्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर असामान्य है। जनगणना के आकंड़े भी सेक्युलर नेता की पुष्टि करते हैं। वैसे जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारणों में जन्मदर तो है ही, सीमान्त क्षेत्रों से घुसपैठ भी है।  


आज सड़क हो या स्कूल, अस्पताल हो या बाजार, रेल हो या बस हर जगह भीड़ ही भीड़ है। हर व्यक्ति व्यवस्था को कोसकर अपनी भड़ास निकाल सकता है लेकिन इसकी जिम्मेवारी व्यवस्था से अधिक समाज की है, हर व्यक्ति की है, हर धार्मिक सामाजिक संगठन की है जिसने समय रहते जनसंख्या को सीमित करने के लिए जनजागरण नहीं किया।  सभी को अपने अन्तस को टटोलकर पूछना होगा कि क्या देश के प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों, किसानों, मजदूरांे के श्रम से प्राप्त समस्त विकास को उनकी चुप्पी निगल रही है या नहीं?  अगर हम सब अब भी खामोश बने रहे और जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने के लिए कठोर कदम नहीं उठाये तो वह दिन दूर नहीं जब भोजन, जल, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगार जैसी जरूरतों को पूरा कर पाना कठिन नहीं, असम्भव बन चुका होगा। बहुत संभव है कि संसाधनों पर बढ़ता यह दबाव अराजकता की स्थिति भी उत्पन्न कर दें।


वहीं कुछ लोगों ने 'एक परिवार-एक बच्चे' का मुद्दा उठाया है। इस विषय पर विश्व के अनेक देशों का अध्ययन कर रहे एक दल का मत है कि जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाना जरूरी है। इस कानून में पहले बच्चे के पालन-पोषण और शिक्षा की व्यवस्था सरकार का दायित्व होना चाहिए। दूसरे बच्चा होने पर अभिभावकांे पर कुछ कर लगाया जाये और उन्हें मिलने वाली सब्सिडी आदि सुविधाएं समाप्त कर दी जाये। यदि कोई तीसरा बच्चे का पिता बनता है तो उसको एक नागरिक के रूप में मिलने वाले समस्त अधिकार समाप्त करते हुए उस पर दण्डात्मक कार्यवाही भी करनी चाहिए। इस कानून को साम्प्रदायिक बताते हुए वातावरण को विषाक्त बनाने वालों पर देशद्रोह का अभियोग चलना चाहिए।


बहुत संभव है  कुछ लोग तर्क प्रस्तुत करें कि इससे लिंग अनुपात असंतुलित हो जाएगा। तो क्यों न सबसे पहले समाज से लड़का- लड़की में भेदभाव वाली मानसिकता को समाप्त किया जाए। कानून के बावजूद लिंग-परीक्षण और भ्रूण-हत्या जारी रहने की बातें की जा सकती हंै। ऐसे तमाम प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करते हुए हमें ही नहीं, उन्हें (विरोधियों को) भी यह स्वीकार करना चाहिए कि जब कोई समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है, तो समाज और सरकार हाथ-पर-हाथ धरे नहीं बैठे रह सकते। कानून बनाने का विरोध करने वालों को अपने आपसे पूछना चाहिए कि उन्होंने बड़े और गरीब परिवार के गरीब बच्चों की शिक्षा और खुशहाली के लिए क्या  किया है? जनसंख्या-विस्फोट का शिकार सबसे ज्यादा वे हो रहे हैं जो साधनहीन हैं। वे ही भूख-बेकारी से पीड़ित हैं और शायद बढ़ते अपराधांे का कारण भी यही है। यह सरकार की नीतियों की विफलता है। 


जनसंख्या विस्फोट केवल एक व्यक्ति अथवा एक परिवार को ही प्रभावित नहीं करता बल्कि सम्पूर्ण देश की खुशहाली को ग्रहण लगाता है, इसलिये प्रभावी तरीके से जनसंख्या-नियंत्रण के बारे में सोचा जाना चाहिए। समाज में जागृति लाने के लिए सबसे पहले इसकी शुरूआत राजनीति से हो। उम्मीदवार केवल वहीं जिसका एक बच्चा हो। अधिक बच्चों वालों पर प्रतिबंध लगे क्योंकि आम आदमी तो समाज के नेतृत्व का अनुसरण करता है। यह संतोष प्रदान करने वाला समाचार है कि देश के माननीय प्रधानमंत्री जी लालकिले की प्राचीर से जनसंख्या विस्फोट के खतरों के प्रति सभी को सावधान कर रहे है। अब आवश्यकता है कि इस विषय पर कुछ ठोस भी किया जाये। अन्य दलों को भी अपने तत्कालिक लाभ-हानि की नहीं, देश और समाज के दीर्घकालिक हितों के बारे में सोचना चाहिए। यदि वे अब भी जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार के स्वर में स्वर नहीं मिलाते तो यह संदेश जााएगा कि वे अपनी वोटों की फसल काटने और अपने समर्थको को सामाजिक, धार्मिक आधार पर बांटकर उन्हें अपने चंगुल में फसाए रखना चाहते है। उनकी मंशा अपने समर्थकों को मूर्ख बनाकर उन्हें गरीब बनाए रखने की हैं। वे समझे या न समझे, लेकिन देश समझ रहा है कि छोटे परिवार आज की जरूरत है। इस पर कोई फतवा देना समय धारा के विरुद्ध होगा।