प्रदूषण में घुलता मानव जीवन


वर्तमान समाज की विडंबना यह है कि आज समस्याएं अधिक हैं और समाधान कम। हर देश अपने ढांचे को मजबूत करने और उद्योग धंधों के माध्यम से लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाना चाहता है लेकिन इसे पाने की चाह में व्यक्ति कितना कुछ खो रहा है, शायद इसका अंदाजा किसी को नहीं है। 


प्रकृति ने हमारे लिए सुखद, सुंदर और स्वस्थ आवरण का निर्माण किया लेकिन हमारे भौतिक सुखों की ओर बढ़ती अभिलाषा ने उसे दूषित कर दिया है। आज क्या शहर और क्या गांव, सभी प्रदूषण की समस्या की चपेट में हैं। आज मनुष्य प्रकृति पर हावी हो गया है तथा वह उसे अपनी सहचरी न मानकर अपनी 'चेरी' बनाने में संलग्न है।


प्रकृति ने भी कुपित होकर मानव को 'प्रदूषण' एवं पर्यावरण असंतुलन के रुप में अभिशप्त किया है। पर्यावरण प्रदूषण के चलते लोगों का जीवन दूभर होता जा रहा है। आज वायुमंडल इतना प्रदूषित है कि स्वच्छ वायु में साँस लेना दूभर होता जा रहा है। प्रदूषण के कारण जलवायु और भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में अवांछनीय परिवर्तन से मानव जीवन, जीव जंतु तथा पेड़ पौधों को अत्यधिक हानि पहुंच रही है। प्रदूषण के कारण जन-जीवन तहस-नहस होता जा रहा है।


सरकार भी इस समस्या के प्रति जागरूक दिखाई देती है। आई.आई.टी. दिल्ली की सर्वेक्षण रिपोर्ट में चैंका देने वाले आंकडे़ सामने आये हैं कि भारत के 58 शहरों की आबो हवा दूषित और रहने लायक नहीं है जिनमें 33 शहरों का प्रदूषण मानक सी.ई.पी.आई का आंकड़ा 70 से ज्यादा है, 32 शहरों का 60 से 70 है, 10 शहर जिनका सी.ई.पी.आई. का आंकड़ा 80 से भी पार जाता है और सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गुजरात के आंकलेश्वर और वापी हैं तो तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद शहर है। ये सभी प्रदूषित शहर भारत के सभी राज्यों में हैं। 


सर्वेक्षण रिपोर्ट में भारत के दिल दिल्ली के नजफगढ़, आनंद पर्वत, ओखला, नारायणा और वजीरपुर इलाके प्रदूषण के लिहाज से घातक हैं। रिपोर्ट के अनुसार केंद्र व राज्य सरकारें इन शहरों में नए उद्योगों को लगाने पर सख्ती से पाबंदी लगाएं। 


पूर्व प्रधानमंत्राी श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में पर्यावरण के लिहाज से केरल की साइलेंट वैली में लगने वाली परियोजना को दृढ़ता से रोका था। आज भी मौजूदा सरकार को पर्यावरण बचाने के लिए कड़ाई से कार्य करना होगा। 


वास्तविकता यह है कि आज अधिकाधिक आबादी को बसाने और खनन कार्यों के चलते प्रकृति का दोहन हो रहा है। वृक्षों का अधिक संख्या में कटना, खदानों और खननों को खोदा जाना, नदियों में नालों का पानी डालकर नदियों को दूषित करना, इसका ज्वलंत उदाहरण यमुना नदी है। इसकी सफाई के लिए करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं और अभी करोड़ों और खर्च होने हैं लेकिन हालात जस के तस हैं। 


आंकडे़ बताते हैं कि आई.टी. सिटी बेंगलूर में करीब सौ साल पहले 300 झीलें और तालाब हुआ करते थे लेकिन मैसूर व बेंगलूर के बीच जब सुपर एक्सप्रेस-वे बनकर तैयार हुआ तो पता चला कि वहां केवल दो-चार तालाब ही बचे हैं। वाहनों का बढ़ना और इनसे निकलने वाला धुअंा तथा अधिक संख्या में उद्योगों का लगना और इनसे निकलने वाला धुआं, शोर और दूषित जल पर्यावरण प्रदूषण को न्यौता दे रहे हैं। 


यदि इसी प्रकार विकास कार्यों के चलते प्रदूषण का आंकड़ा बढ़ता रहा तो भारत का कोई भी शहर रहने लायक नहीं रहेगा क्योंकि प्रदूषण के चलते मानव भयानक बीमारियों से पीड़ित धीरे'-धीरे मृत्यु की ओर अग्रसर हो रहा है। इसलिए प्रदूषण की समस्या से जल्दी नहीं निपटा गया तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी को खुशहाल जीवन नहीं दे पायेंगे।