विदेश से डॉक्टरी करने वाले देसी परीक्षा में हो रहे फेल

 


चिंताजनक: विदेश से डॉक्टरी करने वाले देसी परीक्षा में हो रहे फेल

 

विदेश से एमबीबीएस करने वाले छात्रों को देश में मान्यता देने के लिए होने वाले स्क्रीनिंग टेस्ट ‘फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एक्जामिनेशन (एफएमजीई)' में पास होने वाले छात्रों की संख्या में साल दर गिरावट आ रही है। वर्ष 2011 में जहां 26.94 फीसदी छात्रों ने इस परीक्षा में सफलता हासिल की थी, वहीं 2016 में सफलता का प्रतिशत घटकर 9.44 फीसदी तक पहुंच गई। जुलाई 2018 में हुए एफएमजीई में कुछ सुधार देखा गया, लेकिन दिसंबर 2018 में सफलता की दर गिरकर फिर 11 फीसदी रह गई। 

 

विदेशों से एमबीबीएस करने वाले छात्रों की योग्यता को परखने के लिए राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीई) साल में दो बार स्क्रीनिंग टेस्ट का आयोजन करता है। इसमें हर साल करीब 12 हजार छात्र बैठते हैं। भारत में मान्यता के लिए इस परीक्षा को पास करना अनिवार्य होता है। 

 

मेडिकल शिक्षा एक्टिविस्ट विवेक तिवारी की ओर से ‘सूचना के अधिकार' के तहत मांगे गए जवाब में एमसीआई ने जानकारी दी कि 2011 से लेकर 2016 तक एफएमजीई पास करने वाले छात्रों की संख्या में लगातार कमी आई। 

 

2011 में 26.94 फीसदी छात्रों ने सफलता हासिल की थी, 2012 में आंकड़ा घटकर 24.57 फीसदी, 2013 में 22.80 फीसदी, 2014 में 13.09 फीसदी, 2015 में 11.33 फीसदी और 2016 में घट कर 9.44 फीसदी हो गया। 2017 में इसमें मामूली इजाफा हुआ और यह 11.17 फीसदी हो गया। जुलाई 2018 की जुलाई की परीक्षा में इसमें अच्छा सुधार देखा गया और सफलता की दर बढ़कर 20 फीसदी पर पहुंच गई। इसके बाद दिसंबर 2018 में इसमें एक बार फिर बड़ी गिरावट आई और सफलता की दर सिमटकर 11 फीसदी के करीब रह गई।.

 

एफएमजीई की सफलता दर में तेज गिरावट पर सवालिया निशान उठाते हुए पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉक्टर अनंत भान कहते हैं, ‘हम कह सकते हैं कि विदेशों से एमबीबीएस करने वाले ज्यादातर छात्र भारतीय छात्रों जितने योग्य नहीं हैं। एफएमजीई की सफलता दर में जिस तेजी से गिरावट दिख रही है उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता।

 

परीक्षा कठिन करने का आरोप:

 

विदेशों से एमबीबीएस करने वाले छात्र अक्सर यह आरोप लगाते हैं कि एनबीई जानबूझ कर एफएमजीई का पेपर काफी कठिन बनाता है, जिससे कम से कम छात्र यह परीक्षा उत्तीर्ण कर सकें। छात्रों का आरोप है कि ऊंची फीस वसूलने वाले निजी मेडिकल कॉलेजों को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा करता है। एफएमजीई में फेल होने से छात्र विदेशों से एमबीबीएस करने के लिए हतोत्साहित होंगे और मजबूरन उन्हें महंगे निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेना पड़ेगा।